हाजी हाफिज वारिस अली शाह की कहानी

हाजी हाफिज वारिस अली शाह की कहानी 

या वारिस पाक 
"पवित्र नाम"
आपका पूर्ण नाम वारिस अली शाह है। आप जन्मजात खुदा के अनुरागी थे। अतः आपका जीवन अल्लाह के अनुराग से आरम्भ होकर अल्लाह के अनुराग  में विलीन हो गया। आपका वारिस नाम ही लोगो में प्रिय है और प्रसिद्धा है। मरने के पूर्व मृतक जैसा हो जाने का गंतव्य आपको   प्राप्त है। आप अपने शिष्यों को यही बात सिखाया करते थे। 
"मूतू मिन कबले ान तमूतू "(मरने के पूर्व ही मर जाओ )
आप मुहम्मद साहेब के खानदान के दीपक है। आपको उनसे आतंरिक ज्ञान प्राप्त है। 
जन्म तथा पारिवारिक क्रम 
आपकी जन्मभूमि क़स्बा देवा शरीफ में है जो जिला बाराबंकी उत्तर प्रदेश का एक ऐतिहासिक नगर है। आपका जन्म १२३४ हिज़री सन ईशवी के मुताबिक 1819 ईश्वी है। आप इम्माम हसन महोदय के छविश्वि पुश्त में पधारे थे। 
बचपन 
हुजूर वारिस अली पाक की पैदाइश  रमजान के महीने में हुयी।  आपने दिन में कभी दूध नहीं पिया। ये चर्चा पूरा देवा में  फ़ैल गयी थी। यहाँ  तक की आपने मोहर्रम की दसवीं तारीख को भी दूध नहीं ग्रहण की। यह सब होते हुए भी आप आपने समकालीन जन्मजात शिशुओं से  जयदा स्वस्थ थे। आपका शारीरिक बढ़ाव तेजी पर था और आपका पवित्र  शिर और बच्चो से ज्यादा ऊँचा दिखता था। आपका सम्मान आपके माता दवरा भी अधिक था। 
माता -पिता का स्वर्गवास 
विश्वशनीय  लोगो का कहना है की जब वारिस अली पाक तीन वर्ष के भी नहीं थे तो  आपके माता पिता का स्वर्गवास हो गया गया था।
शिक्षा तथा पठन -पाठन 
हुजूर वारिस अली शाह जब 5 वर्ष में पहुंचे तो रशम रिवाज के अनुसार  बिश्मिल्लाह के बाद आप मकतब में बिठाये गए। आपके तीव्र और विलक्ष्ण बुद्धि को देखकर गुरुजन अचनाभित हो  जाते थे। अधिकांश देखा गया की आप पाठ लेने के पश्चात् जंगल की  ओर  निकल निकल जाते थे और आपका पूरा समय एकांत में व्यतित हो जाता था। 
बचपन की कुछ हालत 
बचपन में ही आप की जप तप की बाते लोगो के जुबान  पर आ गयी  थी। यदि आप किसी से कुछ कह देते थे तो वही हो जाता था। आप अपनी दादी साहिबा के मृत्यु के बाद अपनी पूरी दौलत दीन -दुखियो में दान कर दिया। 
ब्रह्मीभूत होना 
औलिया ईशवर की मृत्यु नहीं है किन्तु ये लौकिक रूप में प्रत्यक्ष दृस्टि से सरीर त्याग देते हैं।  14 मोहर्रम 1324 हिज़री मुताबिक 1905 ईश्वी को आपको साधारण रूप में बुखार हुआ। 20 मुहरम तक आपकी तबियत बहुत ख़राब हो गयी। हज़रत फजीयत अली शाह का कथन है की 30 मुहर्रम 1323 हिज़री 1905 ईश्वी के दिन सरकार वारिस पाक ने सहादत की ऊँगली उठाई और कहा "अल्लाह एक है " 
1905 ईश्वी को 4 बजकर 13 मिनट पर ब्रह्म बेला में वे ब्रह्म में लीन हो गए। उस दिन जुमा का पाक दिन था। 
वारिस पाक का एक पवित्र कथन 
1 "अगर सात दिन का उपवास हो तो भी जबान पर न लावे और अल्लाह से भी न कहे ,क्या वो नहीं जानते जो अपने पास है। "
2" बात तो तब है की साँस  खाली  न जाये। लोगो ने पूछा किससे साँस खाली न जाये तो वारिस पाक ने कहा अल्लाह से। "




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